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क़ादरी बाबा:“जहाँ दुआ सुकून बन जाती है—वो हैं क़ादरी बाबा”

 क़ादरी बाबा : दुआ, ख़िदमत और मोहब्बत की एक रौशन राह

बस्ती की सरज़मीं पर जब भी रूहानियत की चर्चा होती है, एक नाम बड़ी अदब के साथ लिया जाता है 

सूफ़ी एजाज़ आलम ख़ान क़ादरी, जिन्हें लोग मोहब्बत से क़ादरी बाबा कहते हैं।

क़ादरी बाबा शोहरत के तलबगार नहीं, बल्कि ख़िदमत और मोहब्बत को अपना असल मिशन मानते हैं।

उनकी महफ़िल में न अमीरी–ग़रीबी की तफ़रीक होती है, न मज़हब की दीवारें।

जो भी दुखी दिल लेकर आता है, उसे दुआ, तसल्ल्ली और सुकून मिलता है।

तिब्ब ए नबवी ﷺ और दुआ का पैग़ाम

क़ादरी बाबा अक्सर कहते हैं—

“जब दवा काम ना करे, तो दुआ से काम बनता है…

दुआ तो मुक़द्दर भी बदल देती है।”

यह उनकी रूहानी सोच का निचोड़ है—

कि इंसान कोशिश करे, दवा ले…

पर दिल में यक़ीन और भरोसे की दुआ भी साथ रखे।

रूहानी शर्बत – राहत का एक पैग़ाम

अपनी ख़िदमत के दौरान क़ादरी बाबा रूहानी शर्बत भी तबर्रुक के रूप में देते हैं।

कई लोग महसूस करते हैं कि इस शर्बत के साथ की गई दुआ उन्हें एक अनोखा सुकून देती है।

यह सूफ़ियाना परंपरा का हिस्सा है—जहाँ मोहब्बत और रहमत बाँटी जाती है।

कहाँ और कब मिलते हैं क़ादरी बाबा?

क़ादरी बाबा लोगों को सिर्फ़ दो दिनों में देखते हैं:

1. हर इतवार

📍 अपने घर — जयपुरवा, कटेश्वर पार्क के पीछे, बस्ती

2. हर जुमेरात

📍 दारुल उलूम इस्लामिया फैज़ाने आलम, दमया परसा, बस्ती

दूर से आने वाले पहले वक़्त ले लें

दूर-दराज़ से आने वालों के लिए एक अहम सुझाव:

📞 पहले इस नंबर पर फ़ोन करके वक़्त तय कर लें: 9451437422

ताकि किसी भी तरह की असुविधा न हो।

मोहब्बत ही उनका असली संदेश

क़ादरी बाबा का मानना है कि रूह की भूख सिर्फ़ दुआ, मोहब्बत और इंसानियत से मिटती है।

उनकी महफ़िल से उठने वाला हर शख़्स हल्कापन, उमीद और सकारात्मकता महसूस करता है।

अंत में…

क़ादरी बाबा सिर्फ़ एक सूफ़ी नहीं—

एक रौशनी हैं,

एक सुगंध हैं,

एक ऐसी रूहानी हवा जो टूटे दिलों को जोड़ देती है

और इंसानियत को फिर से जगा देती है।


ब्यूरो रिपोर्ट 

AKP News 786

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