महुआ डाबर से 10 जून को शुरू होगा ‘शौर्यनामा’ महाअभियान।
बस्ती। जनपद के बहादुरपुर ब्लॉक स्थित ऐतिहासिक महुआ डाबर गांव से 10 जून 2025 को ‘शौर्यनामा’ महाअभियान का भव्य शुभारंभ होगा। क्रांति स्मृति दिवस के इस आयोजन में देशभर से स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों और क्रांतिकारियों के वंशज, इतिहासकार, सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता, किसान, छात्र, शिक्षक, पत्रकार और जनप्रतिनिधि भाग लेंगे। आयोजन की तैयारियां महुआ डाबर संग्रहालय द्वारा पूर्ण कर ली गई हैं।
10 जून की सुबह 10 बजे से डॉ. शाह आलम राना के संयोजन में निःशुल्क स्वास्थ्य परामर्श शिविर लगेगा, जिसमें शुगर, बीपी, मलेरिया, टायफायड, हीमोग्लोबिन आदि की जांच कर मुफ्त दवाएं वितरित की जाएंगी। कैंप का शुभारंभ क्रांति स्थल पर क्रांतिकारी वंशजों द्वारा किया जाएगा। 11 बजे से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दुर्लभ धरोहरों की ऐतिहासिक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया जाएगा।
दोपहर 3 बजे शहीद अशफाक उल्ला खां स्मृति द्वार से क्रांतिकारी वंशजों का स्वागत कर क्रांति स्थल तक ले जाया जाएगा, जहां शाम 4.30 बजे से संकल्प सभा का आयोजन होगा। सभा को शहीद अशफाक उल्ला खां के पौत्र शादाब उल्ला खां, विद्वान देव कबीर, शहीद शोध संस्थान के सूर्यकांत पांडेय, गुलजार खां के वंशज डॉ. इरफान खान और विचारक अविनाश गुप्ता जैसे वक्ता संबोधित करेंगे। संचालन अभिनेता व रंगकर्मी रफी खान करेंगे।
सायं 5.30 बजे महुआ डाबर विजय दिवस पर मशाल जलाकर गांव को ‘गैर-चिरागी’ की पीड़ा से रोशन किया जाएगा। ‘शौर्यनामा’ अभियान का उद्देश्य महुआ डाबर की बलिदानी गाथा को राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बनाना और नई पीढ़ी को इसके गौरवशाली इतिहास से परिचित कराना है।
महुआ डाबर की कहानी भारत के उन अनसुने, अनदेखे पन्नों में से है जिन्हें इतिहास ने लगभग भुला दिया। 1857 की क्रांति के दौरान इस छोटे से गांव ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला कर साहसिक विद्रोह किया, जिसके दंडस्वरूप 3 जुलाई 1857 को गांव को पूरी तरह तहस-नहस कर ‘गैर-चिरागी’ घोषित कर दिया गया। इसके बाद न तो गांव नक्शों में रहा, न ही इतिहास में।
लेकिन गांव का जज़्बा मिटा नहीं। 2011 में हुई खुदाई में जली हुई ईंटें, करघे के टुकड़े और मिट्टी के बर्तन इतिहास की गवाही देने लगे। 2022 में इसे स्वतंत्रता संग्राम सर्किट में शामिल किया गया। हालांकि अब भी यह न्याय और स्मृति की प्रतीक्षा में है।
महुआ डाबर की यह विरासत केवल एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा का हिस्सा है। इसे याद करना केवल इतिहास को सम्मान देना नहीं, बल्कि यह भी कहना है कि हर छोटी आवाज़, हर बलिदान मायने रखता है — चाहे वह कितनी ही दूर और भूला हुआ क्यों न हो।
रिज़वान खान की रिपोर्ट
AKP न्यूज़ 786
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